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उपदेशसाहस्री / उपदेश ३ / आदि शंकराचार्य

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ईश्वरश्चेदनात्मा स्यान् नासावस्मीति धारयेत्।
आत्मा चेदीश्वरोऽस्मीति विद्या सान्यनिवर्तिका॥

आत्मनोऽन्यस्य चेद् धर्मा अस्थूलत्वादयो मताः।
अज्ञेयत्वेऽस्य किं तैः स्यादात्मत्वे त्वन्यधीह्नुतिः॥

मिथ्याध्यासनिषेधार्थं ततोऽस्थूलादि गृह्यताम्।
परत्र चेन् निषेधार्थं शून्यतावरणं हि तत्॥

बुभुत्सोर्यदि चान्यत्र प्रत्यगात्मन इष्यते।
अप्राणो ह्यमनाः शुभ्र इति चानर्थकं वचः॥