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उपदेशसाहस्री / उपदेश ६ / आदि शंकराचार्य

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छित्त्वा त्यक्तेन हस्तेन स्वयं नात्मा विशेष्यते।
 तथा शिष्टेन सर्वेण येन येन विशेष्यते॥

तस्मात् त्यक्तेन हस्तेन तुल्यं सर्वं विशेषणम्।
 अनात्मत्वेन तस्माज् ज्ञो मुक्तः सर्वविशेषणैः॥

विशेषणमिदं सर्वं ज्ञात आत्मन्यसद् भवेत्।
 अविद्यास्तमतः सर्वं ज्ञात आत्मन्यसद् भवेत्॥

ज्ञातैवात्मा सदा ग्राह्यो ज्ञेयमुत्सृज्य केवलः।
 अहमित्यपि यद् ग्राह्यं व्यपेताञ्गसमं हि तत्॥

यावान् स्यादिदमंशो यः स स्वतोऽन्यो विशेषणम्।
 विशेषप्रक्षयो यत्र सिद्धो ज्ञश्चित्रगुर्यथा॥

इदमंशोऽहमित्यत्र त्याज्यो नात्मेति पण्डितैः।
 अहं ब्रह्मेति शिष्टोऽंशो भूतपूर्वगतेर्भवेत्॥