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तोरो जरा हुक्म मिल जाये सास / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
तोरो जरा हुक्म मिल जाये सास जै भात न्यूतने जाऊंगी
जूनागढ़ के बीच में मेरे बाबल सेठ कहावें
देवर जेठानी सब न्यूं कहे बिन भात ना ब्याह सुहावे
अरी क्यों भारत न्योतणे जावे बहुवल तेरो बाप भिखारी
घर घर का भिखमंगा क्या भात भरेगा नंगा
तेरी संग भिखारिण मां है और भीख मांग कर खा है
अरी ओ टोटे में लाचार बहुवल तेरा बाप भिखारी
तूं घर नरसी के जावै नहीं भोजन तुझे खिलावै
भूखण मरे फेर पछतावै बहुवल तेरो बाप भिखारी