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तेरा दादा रै बरजै बन्दड़े सांझै चढ़िये / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
तेरा दादा रै बरजै बन्दड़े सांझै चढ़िये
धूप पडै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा ताऊ रै बरजै बन्दड़े सांझै चढिये
धूप पड़ै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा बाब्बू रै बरजै बन्दड़े सांझै चढिये
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा काका रै बरजै बन्दड़ै सांझै चढिये
धूप पड़ै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै