भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा दादा रै बरजै बन्दड़े सांझै चढ़िये / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 13 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=शा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा दादा रै बरजै बन्दड़े सांझै चढ़िये
धूप पडै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा ताऊ रै बरजै बन्दड़े सांझै चढिये
धूप पड़ै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा बाब्बू रै बरजै बन्दड़े सांझै चढिये
धूप गिणै ना सर्दी गिणै
तेरा काका रै बरजै बन्दड़ै सांझै चढिये
धूप पड़ै धरती तपै
उस बन्दड़ी के चा मैं मिरगां नैणी के चा मैं
धूप गिणै ना सर्दी गिणै