हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दो खरबूजे एक से क्या जी दो खरबूजे रस भरे दोनों लाल गुलाल
दोनूं समधी एक से कोए एक हीरा एक ऊंचे साजनों जी लाल
बन्ना आया मैं सुण्या क्या जी कूदूं कलियर कोट
पुरजा पुरजा उड़ गया मेरे रतिए न लागी ऊंचे साजनों जी चोट
ऊतर बन्ना घोड़िए क्या जी देख सुसर की जी पोल
सोना तुल्ले हे तराजुए एक हाथी घूमै ऊंचे साजनों जी बाहर
बन्ना बन्नी ले चले क्या जी समधी ले चले दान
बराती फीके पड़ गए उनकी किन्हें न पूछी भड़वे जानके जी बात