हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ब्याही थी रे बिलसी नाहीं, या क्या हुई प्यारी ए
तोड़ी थी रे सूंघी नाहीं, ली थी गले में डार प्यारी ए
घर घर की दीवा घर घर बाती, रंडुवे के घर घोर अंधेरा ए
घर घर भोजन घर घर रोटी, मेरे घर ढकनी में चून प्यारी ए
दामन चुंदरी खूंटी धरे हैं, एक बार पहर दिखाय प्यारी ए
पानी की गगरी रीती धरी है, इक बार सागर जाय प्यारी ए
गहने का डिब्बा भरा धरा है, एक बार पहन दिखाय प्यारी ए
भैया तेरा लेने आया, एक बार नैहर जाय प्यारी ए
सेजें मेरी सूनी पड़ी हैं, एक बार सूरत दिखाय प्यारी ए
डाल खटोला बगड़ बिच सोया, एक बार सुपने में आय प्यारी ए