भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:01, 13 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=हर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत
कहूं सीधा तैं चालै आडा याहे बात कसूत
मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत
तेरै संग मैं पांच भूतणी
कोन्या मानै रांड ऊतणी
तैं पाक्का सै भूत
मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत
पांच चोर सै तेरे रे साथी
तेरी समझ में कोन्या रे आती
चौड़े लोआ दे जूत
मेरी तेरी कोन्या बणै रे मन ऊत
मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा
एक मन कहै मैं साइकल तो घुमाया करूं
एक मन कहै मोटर कार मैं चलाया करूं
रै मन डटदा कोन्यां डाटूं सूं रोज भतेरा
एक मन कहै मेरे पांच सात तो छोहरे हों
एक मन कहै सोना चांदी भी भतेरे हों
मन डटदा कोन्यां डाटूं सूं रोज भतेरा