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पांच पंचास की नाथ घड़ाई / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पांच पंचास की नाथ घड़ाई
पड़गी लामनी पहरन ना पाई
सांज ताहीं करी लामनी
सांज पड़ै घरां डिगराई
आगै सासड़ लड़ती पाई
देखा क्यूंना काम बखत क्यूं ना आई
सास मिरी नरै मक्की री सुकाई
ढाई सेर की कूंडी बखत उठ कै
आधी पीस कै कंथा धोरै आई
के सोवै हो कै जागै नणदी के भाई
मक्की मत बोइए हो कलावती के भाई
डिगगी धरण ठिकाने नहीं आई
सास मर जागी नणद घर जागी
तेरे मेरे राज में मक्की छूट जागी