Last modified on 17 जुलाई 2014, at 10:34

दोहाइ हे इन्द्र महाराज! / यात्री

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 17 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यात्री |अनुवादक= |संग्रह=पत्रहीन ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उपजत
मोनक खेतमेँ
अगबे कुंठाक फसिल

लागत
सृष्टिक क्रम-पात
आद्यनत बिल्कुल जटिल

झहरत
राति - दिन, सदक्षण
निराशाक कारी - कारी मेघ

लटकत
बढ़ल जाएत नहू - नहू
आवंछित असफलताक घेघ

मिझैत
प्रीतिक मधूर आँच
भेल जाएत सुरूचि नष्ट

मेटैत
बढ़िमका रेख तरहत्थीक
बढ़ल जाएत नानाविध कष्ट

सूझत
हँ, आन किच्छु टा नहि
भासित हैत मात्र त्रास - महात्रास

बूझत
सगरो जहान मतिक्षिप्त
मूह दूसत धुआँठल आकाश

ससरत
दोहाइ हे इन्द्र महाराज!
हिलाउ जुनि अपन कुंडल

उनटत
उनटित जाएत सरिपहुँ
हमरा लेखेँ समग्र भू—मंडल