हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बांदी भेजूं हो साहब! घर आ ताता सा पाणी सीला हो रहा
तुम न्हाओ रै गौरी म्हारी कंवर नहवा हमतै पड़ौसिन के घर न्हां ल्यां
बांदी भेजूं हो साहबा! घर आ तपी रसोई सीली हो रही
तुम जीमो रे गौरी म्हारी मात जिमा हमतै पड़ौसिन के घर जीम ख्यां
बरस्या बरस्या रे झंडू मूसलधार लाल पड़ौसिन का घर ढह पड़ा।
चाल्या चाल्या रे झंडू सिर धर खाट लाल पड़ौसिन के सिर गूदड़ा।
खोलो खोलो रै गौरी म्हारी बजर किवाड़ सांकल खोलो लोहसार की
म्हारी भीजे री गौरी पंचरंग पाग लाल पड़ौसिन के सिर चूंदड़ी
दे दो रे छोरे बुलदां का पाल लास लसौली झंडू पड़ रहे जी