हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
महलां तै बैठी तेरी माता झरुवै, देख जेठानी का पूत
जाहर एक घरूं घर आ
सासरै तेरी बेबे रे झरुवे देख जेठानी का बीर
जाहर एक घरूं घर आ
पीहर में तेरी गोरी झरुवै देख भाणका नाथ
जाहर एक घरूं घर आ
सातैं ने आऊं ना मैं आठैं ने आऊं आऊं नवमी की रात
जाहर एक घरूं घर आ
धड़ धड़ धरती पाट के सुध लीलै गया समाय
जाहर एक घरूं घर आ