राम मंत्रवत अहँक नाम जपि-जपि दिवस बितावै छी,
रातुक बीच चान पर तपि-तपि ध्यान लगावै छी
कहू अहाँ की आन हमर छी
देहक रूसल प्राण हमर छी
हे पाथरक देवता जागू
अहीं एक भगवान हमर छी
हम निर्दोष फूल तैयो निरमाल बनावै छी
जाहि बाट केॅ नित्य बहारी
हम तीतल आँचर सँ झारी,
जकरा अपना मे रखने अछि,
हमर आँखि ई कारी-कारी
आइ ताहि पर किएक अलसित गति सँ आवै छी
हमरा लेल राजपद त्यागू
भवन छोड़ि कानन केॅ भागू,
पाछूक सीता सन सुन्नरि
दौड़ि पड़ि औ आगू-आगू,
प्यासल प्रेमक जलद मर्यादा किएक जगावै छी
आऊ - आऊ हे प्रिय अभ्यागत
अछि पसरल हृदयासन स्वागत
प्रियतम अहँक पलकहुँ लकि सँ,
हमर जन्म जन्मान्तर जागत
लाऊ पखारि चरण नयन सँ जल छलकाबै छी,
रातुक...