भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुन्ना कक्का सासुर चलला / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:14, 18 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कच्छी कऽसि-कऽसि तहिपर धोती रऽचि रऽचि कऽ
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
 
सबसँ पहिने पोखरि धॅसला,
चढिते काठ उनटि कऽ खसला
मललनि माथ माँटि करिऔटी,
ऊपर अयला झारि लंगोटी
 
अधमोनी झामा सँ गत्तर-गत्तर मलि-मलि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
 
एते किएक बेकल हौ मुन्ना
तोरे एकटा सासुर की
जतरा करऽ दिन देखबा कऽ,
बाबा जी कहि देलनि ई
 
अधपहरा जखने हेतै, दू मिनट हेतै दस बजि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
 
ताबरतोर चलल जा रहला,
जेठक तेज विहाडि जकाँ
रैन कतहु ने, पडे बाट मे,
साँझ लगए मुँनहारि जकाँ
 
हुलसल डेग बढाबथि आगाॅ हुमचि - हुमचि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ
 
झाॅपल मुँहें सासु कहलथिन,
झा हमरा बड मानै छथि ।
जखन - तखन हमरो खातिर,
गरमे रसगुल्ला आनै छथि ।
 
अझुका सबटा गुलगुल्ला थिक झा बजला हँसि-हँसि कऽ,
मुन्ना कक्का सासुर चलला, पूरा सजि-धजि कऽ