भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टुकड़ा है एक / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत विहग उतरा / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आक्षितिजी नील गगन दिन का
       टुकड़ा है एक आलपिन का ।
आक्षितिजी नील गगन दिन का

बित्ते भर धूप का उछलना
केवल तारीख़ का बदलना

भोर : नया गीत पड़ोसिन का
       टुकड़ा है एक आलपिन का ।

दोपहरी : मेज़ की कहानी
सन्ध्या : रस भरी परेशानी

सूर्य : थमे सागर का तिनका
       टुकड़ा है एक आलपिन का ।