भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टुकड़ा है एक / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आक्षितिजी नील गगन दिन का
     टुकड़ा है एक आलपिन का ।
आक्षितिजी नील गगन दिन का

बित्ते भर धूप का उछलना
केवल तारीख़ का बदलना

भोर : नया गीत पड़ोसिन का
     टुकड़ा है एक आलपिन का ।

दोपहरी : मेज़ की कहानी
सन्ध्या : रस भरी परेशानी

सूर्य : थमे सागर का तिनका
     टुकड़ा है एक आलपिन का ।