भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाँव का शिकारा / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत विहग उतरा / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अनजानी भूल की तरह
अँकुराया दूध-जला तारा
लौट चला दिन
हारा-हारा
आँगन की धूल की तरह ।
खुली-खुली लहर वर्तुली
बुढ़ियाई, थक गई
बरगद की डाल चुलबुली
ताल में उझक गई
खोंस लिया चम्पई सितारा
जूड़े में फूल की तरह ।
शरमीली साँवरी निशा
पानी में घुल गई
गर्वीली सोनई दिशा
काजल से छुल गई
डूब गया गाँव का शिकारा
प्रतिबिम्बित कूल की तरह ।