भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन्दर बातें / सविता सिंह

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:52, 28 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी / सविता सिंह }} जब हम...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हम मिले थे

वह समय भी अजीब था

शहर में दंगा था

कोई कहीं आ-जा नहीं सकता था

एक-दूसरे को वर्षों से जानने वाले लोग

एक-दूसरे को अब नहीं पहचान रहे थे

हम एक-दूसरे को पहले नहीं जानते थे

लेकिन इस पल हम एक दूसरे को ही जान रहे थे

तभी तो उसने मेरे बालों को पीछे समेट कर

गुलाबी रिबन से बांधा था

और कहा था--

दंगा यूँ ही चलता नहीं रह सकता

किसी न किसी को यह बात ज़रूर सूझेगी एक दिन

कितनी सुन्दर चीज़ें पाने को पड़ी हैं इस दुनिया में

कितनी सुन्दर बातें कहने को अब भी बाक़ी हैं