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बस्तर के मोर भुईयां गा / रमेशकुमार सिंह चौहान

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(यह रचना आल्हा छंद में है)

बस्तर के मोर भुईयां गा, छत्तीसगढ़ के हवय शान।
जंगल झाड़ी डोंगरी हवे, छत्तीसगढ़ के हवे जान।।

इहा संगी सब भोला लागे, जइसे गा भोला भगवान।
ऊघरा रही करे गुजारा, संकट मा हे ईखर प्रान।।

जब ले इहां नकसली मन आगे, जागे हे नकसली जमात।
छानही म जस भुजंय होरा, मचाय हवंय बड उत्पात।।

छोटे बड़े सब मनखे के, बोकरा कस करे ग हलाल।
सरकार असहाय कस लागे, हाथ मिंज के करे मलाल।।

बैरी मन ह सीर चढ़ नाचे, मचे हवय गा हाहाकार।
नेता जवान सबो मरत हे, घात लगा जब करे प्रहार।।

लुका लुका के इन लड़त हवे, अपन आप बहादुर बताय।
फोकट फोकट के मनखे ला, काबर एमन मार गिराय।।

कब तक हम सब देखत रहिबो, टुकुर टुकुर जस ध्यान लगाय।
पापी के जर नाश करे बर, कइसे हम सब करी उपाय।।

छाती मा आगी दहकत हे, धनुष बाण अब लौव उठांव।
शांति बर अब फेर लड़ना हे, जुझारू बाजा फेर बजांव।।