भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चल जाबो देखन / रमेशकुमार सिंह चौहान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 6 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेशकुमार सिंह चौहान |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चल जाबो देखन, नाचा पेखन, कतका सुघ्घर, होवत हे।
जम्मो संगी मन, अब्बड़ बन ठन, हमन ल तो, जोहत हे।।
नाचत हे बढि़या, ओ नवगढि़या, परी हा मान, टोरत हे।
जोकर के करतुत, हसाथे बहुत, सब्बो झन ला, मोहत हे।