Last modified on 6 अगस्त 2014, at 20:37

ये गोरी मोरे / रमेशकुमार सिंह चौहान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 6 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेशकुमार सिंह चौहान |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये गोरी मोरे, मुखड़ा तोरे, चंदा बानी, दमकत हे।
जस फुलवा गुलाब, तन के रूआब, चारो कोती, गमकत हे।।
जब रेंगे बनके, तै हर मनके, गोड़ म पैरी, छनकत हे।
सुन कोयल बोली, ये हमलोली, मोरे मनवा, बहकत हे।।