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आकर्षक चमकीले लोग / अभिनव अरुण

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आकर्षक चमकीले लोग
केंचुल में ज़हरीले लोग।

आत्ममुग्धता की परिणति हैं
सुन्दर सुघड सजीले लोग।

भूख की आंच पे चढ़ते हैं नित
खाली पेट पतीले लोग।

झंझावाती जीवन सागर
हम शंकित रेतीले लोग।

चीर हरण करते आँखों से
कुंठाओं के टीले लोग।

स्वार्थ की धूप में पानी पानी
बे उसूल बर्फीले लोग।

पथरीली चौपाल देश की
चर्चा में पथरीले लोग।

गांव में आकर शहर खा गये
परिश्रमी फुर्तीले लोग।

गिरगिट जैसा रंग बदलते
चापलूस चमचीले लोग।

ज़्यादातर अव्वल आला हैं
अवसरवादी ढीले लोग।