भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिनकर वन्दन हुनका सलाम / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 8 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सामाजिक न्यायक नामलैत खल-दल राष्ट्रक धन टपा रहल,
दुनीर्तिक कारण लोकतन्त्र हो शिलाखण्डतर चपा रहल,
फन काढ़ि अपन चौदिस विषधर हो-जीह जखन लपलपा रहल,
दावग्नि बनल आतंकवाद जन-जीवनकेँ हो तपा रहल।
नहि उचित तखन धर सुटुकि रही, जागी बल-पौरूषकेँ आँकी
नहि क्षुद्र स्वार्थ वश अंट-संट बाजी आ गप्पे टा हाँकी,
जन-जनक आत्मविश्वास जगा असुली दोबड़ जे अछि बाँकी
स्वर्णाक्षरमे लिखि किछुपन्ना इतिहासक पृष्ठ संग टाँकि।
अभिनन्दनीय श्री चिदम्बरम् छथि वन्दनीय अब्दुल कलाम
कय रहल सकल भारतवासी हिनकरवन्दन, हुनका सलाम,
जो सम्प्रति विश्वक रंगमंच पर देशक मान बढ़ौलनि अछि,
वीरत्वक भाव बिझायल छल तकरापन शान चढ़ौलनि अछि,
अहिरावण कुल संभूत असुर कहबय चाहय विश्वक दादा,
जे आँखि तड़ेरय सब पर आ तोड़य मानवकुल मर्यादा,
बुझना जाइछ तकरो भऽ रहलै योग कने श्रीज्ञानझाक,
ठकमूड़ी लागल बहुतोकेँ, गुनिधुनिमे अछि नापाक पाक।
जे बुद्धि बेचि अनका हाथेँ, हो श्वान बृत्तिएँ जीवि रहल,
जे फेकल पाते चाटि-चाटि अपमान अमृत बुझि पीबि रहल।
जयचन्द पथक अनुगामीकेँ एहूमे सूझइ राजनीति,
आश्चर्य-जनक घटना नहि ई, सबदिनसँ रहलै यैह रीति।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ वाक्यक ई देश रहल अछि उद्घोषक,
पशु-पक्षी, जड़-जंगम समेत प्राणीमात्रक थिक संपोषक,
तकरा भविष्यमे कय न सकत ई म्लेच्छ निवह पुनिपुनि लांछित,
अछि अटल सदासँ सत्पथ पर निश्चय पाओत फल मनवांछित।