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हदमद्दीसँ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हदमद्दीसँ वनमे नीक
बाँचल चिन्ता तखत कथीक?
देशक हित जी-जान लगौने चारिमपनमे अयलहुँ आब,
गोटी एक उफाँटि पड़ल तेँ ताही पर छल सभक दबाव।
ओझरौने रखने छल टीक
आयल समय एहि कहबीक॥
केवल सबकेँ सूझि रहल छै अपने दल आ अपने प्रान्त,
सौंसे भारत जाओ निखत्तर, जाओ चूल्हिमे सब सिद्धान्त।
सब बुझैछ हमही छी ठीक,
लपकब टूटत चखने सीक॥
गोरि नारि गौरवसँ आन्हरि, तकरे ई प्रत्यक्ष प्रमाण,
त्रिया चरित दैवो ने जानथि तँ पुनि जानि सकत के आन?
ई दुस्साहस थीक अहींक
फेकि देल बुझि पानक पीक॥
बीतल दिन इतिहास बनै अछि, जानय से सौंसे संसार,
ऊँहा अटल बनि डटल रहब तँ दुर्गा आबि लगौती पार।
बनल रहू पुरूषार्थ प्रतीक,
करू भरोस एहन जन्तुक जे सहि न सकय दिनकरक प्रकाश,
तकरा पथसँ विपथ करत के अपनापर जकरा विश्वास।
लिअऽ नाम वजरंगबलीक
धरत बाट सब अन्ध-गलीक॥