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नाटक / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय

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सुयोग और सुविधा
दस भाइयों को मिले एक समान
क्यों किले किसी को बहुत ज़्यादा
और किसी को बहुत ही कम।

जिन्होंने इस बारे में सोचा था-
उनके पास सिर्फ़ हाथ ही नहीं
क़लमें भी थीं।
तभी तो सारी धरती को
गढ़ने और सजान के लिए उन्होंने
हाथ और क़लम, दोनों को
साक्षी बनाया-

फिर भी उनकी नहीं हो पायी रक्षा।
राजा के दालान में मच गया घनघोर शोर
चला गया साज-ताज
चारों ओर छूटने लगे लठैत और तीरन्दाज।

हाथ में परवाना लेकर आ पहुँचा वह
कुंडी खड़खड़ाते ही
दरवाजे़ पर दीख पड़ सब-के-सब
बाप-भाई-भैया-चाचा
किसके हाथों में डालीे वह हथकड़ी
और किसे हवालात की हवा खिलाए अब?
लो शुरू हुआ एक और नाटक!