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रानी बनलि हिन्दी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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रानी बनलि हिन्दी;
तुलसी तकर सिर बिन्दी, (आ कि आहो रामा)
देश अभागल ताही दिनसँ जागल रे की।
कहलनि ओ राम कथा जे,
सीताकेर मनक व्यथा जे
एक-एक पद अनुपम रसमे पागल रे की
पढ़ि पढ़ि कय गौरव गाथा,
उन्नत अछि देशक माथा,
लोकक मनसँ संशय सबटा भगल रे की।
चलला वन दूनू भैया,
सङमे श्री सीता मैया,
चित्रकूट पर भरतक मनुआँ लागल रे की।
रहला जा पंचवटी मे
लछुमन सङ पर्णकुटी मे
हरलक सीता रावण परम अभागल रे की।
सजलनि ओ वानर दलके,
मारल जा निशिचर खलकेँ,
मारि तीरसँ दानव-दलके दागल रे की।
भगत विभीषण राजा,
लंकामे बाजल बाजा,
सुर-नर किन्नर सभहिक हृदय जुड़ायल रे की।
धुरला अवध दिस राम,
पुलकित मन गामक गाम,
अवधक लोकक हृदय अवधिपर टाङल रे की।
जखने अवतरला तुलसी,
हुलसित मन हुलसथि हुलसी,
जर्जर भारत भूमिक अन्तर लागल रे की।
तुलसी जयन्ती वेला,
लागल मन भावक मेला,
चरण-कमल मे अमर अचल मति माङल रे की।