भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऋतुराज मे विरहिनी / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव कुमार झा 'टिल्लू' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया कोना कऽ बिततै फागुन मास अपार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना
 
कोइली कुहकै ठाढ़ि पात
होइछ मन मे अघात
एकसरि डूबि रहल छी, अहीं बिनु हम मझधार औ
जीवन भेल पहाड़ औ ना

भ्रमरक गुंजन लागय तीत,
केहेन निष्ठुंर भेलहुँ मीत
कोना कऽ सूखि सकत ई फूटल अश्रुधार औ,
जीवन भेल पहाँड़ औ ना
 
सखी सभ सदिखन अछि कवदाबय,
बिछुरन रोदन लऽ कऽ आबय
बिहुंसल यौवन पसरल मेघ आ अभिसार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना
 
देखिते अबीर गुलालक रंग
विरह बनौलक कलुष उमंग
कहू कोना उठत ई मृत शय्याक कहार औ,
जीवन भेल पहाड़ औ ना