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भौजीक अवाहन / कालीकान्त झा ‘बूच’

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कौआ माँझे घर बड़ेरी पर भोरे सँ कुचड़ै
भौजी अबिते हेती राॅची सँ सगुन उचडै़

अपने भैया भात पसौलनि,
हमरो सँ किछु काज करौलनि,
बारी सँ तिलकोर पात किछु आनै ‘बूच’ रै

दुःखी मोन केॅ पोटि रहल छथि,
काॅच दालि केॅ घोटि रहल छथि,
पुरूखो हाथे दलिघोटना वर बढ़िया उसरै

जल्दी - जल्दी केश छटौलनि,
गुलुरोगनक तेल लगौलनि,
दहिन आँखि फड़कै छनि लागथि बर खुश रै

भौजी औती ई रूसि रहता,
नोरे मे सभ व्यथा सुनौता,
हिनका खातिर आबि रहल छनि लेमनचूस रै