भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेहर सिंह लखमी दादा / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 14 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणवीर सिंह दहिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले मैं भिड़े बताये।।
लखमी दादा नै मेहरु धमकाया घणे कड़े षब्द सुनाए।।
सुण दिल होग्या बेचैन गात मैं रही समाई कोन्या रै
बोल का दरद सहया ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै
सबकै साहमी डांट मारदी गल्ती उसतैं बताई कोन्या रै
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरु नै भाई कोन्या रै
सुणकै दादा की आच्दी भुन्डी उठकै दूर सी खरड़ बिछाये।।
इस ढाल का माहौल देख लोग एक बै दंग होगे थे
सोच समझ लोग उठ लिए दादा के माड़े ढंग होगे थे
लखमी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे
लोगां ने सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे
दादा लखमी अपनी बात पै बहोत घणा फेर पछताए ।।
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया
दुखी करकै दादा नै उसका दिल भी था उदास हुया
दोनूं जन्यां ने उस दिन न्यारे ढाल का आभास हुया
आहमा साहमी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वे कदे नजर नहीं आये।।
गाया मेहर सिंग नै दूर के ढोल सुहाने हुया करैं सैं
बिना बिचार काम करें तैं घणे दुख ठाने हुया करैं सैं
सारा जगत हथेली पीटै ये लाख उल्हाने हुया करैं सैं
तुक बन्दी लय सुर चाहवै लोग रिझाने हुया करैं सैं
रणबीर सिंह बरोने आले नै सूझ बूझ कै छंद बनाये।।