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भदैया होली / कालीकान्त झा ‘बूच’

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डीहो धरि डूबल जखन बुर्ज बालुका पंक
रंग कोना पकड़त कहू तखन होलिका अंक
असली होरी बाढ़ि विच माँचल छल नैहऽर
आङी डूबल घऽर मे, साड़ी भासल चऽर
फगुओ सँ भऽ गेल अछि, अधिक नीक भदवारि
बूढ़ी पत्नी बेड़ पर कोरा मे नव सारि
भौजी कहलनि हुलसि कऽ लाउ लगा दी रंग
तेवर तेसर नयन लग, पसरल अजर अनंग
अपने छी परदेश मे हम छी बान्हे पऽर
यौवन खतरा बिन्दु लग, देह करय थर-थऽर
प्रेमक जल नेपाल सँ छूटल अछि चलि आउ
चैते मे डूबब पिया, शीघ्र नाव बनवाउ
डिम-डिम ढ़ोलक ढ़ेंप सँ छिटकल देहक पानि
उज्जर केश अबीर तर, बुढ़ियो भेलि जुआनि
मंत्री उड़थि अकाश मे, पब्लिक गेल पताल
धरती पर नेता लोकनि कऽ रहला रंगताल
सम्मत जहिना जड़ि रहल तहिना जड़ल करेज
दुहू जीव कछमछ करी पड़ल उपासक सेज
भोजन पैकेट पानि मे, गूड़ चूड़ा सभ गूम
फाउन्टेन पेनक धार मे भासल बूट गहूम
टूटल बलुआहा जखन खसला भीम उतान,
अर्धांगिनीक चरण पकड़ि बचौलन्हि कहुना जान