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स्वर्णाक्षर / रश्मि रेखा

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मेरी किताब पर
तुम्हारी लिखावट में लिखा मेरा नाम
अभी भी मेरे पास जगमगा रहा है
स्वर्णाक्षर में लिखा नाम
क्या ऐसा ही होता है

उमस भरी दुपहरी में
अचानक आई एक तेज बारिश की तरह
 तुम्हारा ख़त
भिंगो गया मेरा पोर-पोर
किसी के साथ पानी में भींगना
क्या ऐसा ही होता हैं

आओ थोड़ी देर बैठे
थोड़ी बाते करे
थोड़ा समय गुजारे साथ-साथ
अपने अकेलेपन में डूबे-डूबे ही सही

लेकिन हमारे पास तो आकाश भर बाते है
कभी न ख़त्म होने बाले सिलसिले
किसी कथासरित्सागर की रचना
क्या ऐसे ही होती है