भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई एक जीवित है / लीलाधर जगूड़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 5 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आततायी डरा हुअ है कि कोई एक जीवित है
कोई एक जीवित है
कोई एक स्‍त्री। कोई एक पुरुष
कोई एक बच्‍चा कहीं जीवित है

और इस प्रकार अनेक मनुष्‍य जीवित हैं

आतंकित मारा जाता है सभय अकेला
विवेक भी डर जाय ऐसी मौत
उद्देश्‍य मारना नहीं डर जीवित रखना है
जो भी जाति हो डरती रहे जीवित रहने से
और अपने को मात्र मनुष्‍य जाति कहने से

अत्‍याधुनिक डर आता है बाजार से निकलकर
अनजाना एक व्‍यक्ति डरता है किसी की जान पहचान से

फिर भी आतंकी डरा हुआ है कि कोई एक जीवित
हजारों की तादाद में जीवित है।