लग्न- लागल / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
नहि ककरो छठिहारक लग्न
नहि बाँचल संस्कारक लग्न
नहि नास्तिकताक लेश
नहि क्षद्म आस्तिक अवशेष
नहि कथुक हकासल क्लेश
नहि हाहिक पियासल वेश
मुदा! अन्हार मे छलहुँ औनाइत
जीवन-निशाक मरुघट मे बौआइत
मौन- गछारल मनोरोगी जकाँ
अंटेट्टल बाटविहीन योगी जकाँ
अगम- असह्य दुःख भोगी जकाँ
बिनु व्याधिक पड़ल सोगी जकाँ
अचके मे! सिनेह जागल
जखने कौतुक “लग्न-लागल "
अहाँ कोना पसीझि गेलहुँ?
अज्ञक वाक सँ रीझि गेलहुँ
हे कविता! हे कल्पना
मातृ-सिनेह साधल अल्पना
सबल सहकर्मिनी
धवल सहधर्मिनी
संतक कामिनी
कंतक भामिनी
रीति दामिनी
प्रीति वामिनी
पुनर्नवाक भव्या
हस्तिक अभव्या
चरण संग सिनेह भेल
आँचर तर गेह भेल
अपनेक हाथ हमर माँथ लागल
विश्रांति टूटल “लग्न जागल "
हे प्रिये! आशु देवी!!
कोन रूपक नेह सेवी?
अपने केँ हमर दुआरि सूझल
मोनक बन्न कपाट फूजल
सोग सभ विदीर्ण भेल
रोग-व्याधि जीर्ण भेल
सर्वकाम प्रगीतक श्रृंग चढ़ल
भाव-प्रीति स्वर भृंग बढ़ल
राति-दिन अनंत अर्चना
अष्टयाम अहीँक साधना
अहीं चिष्टान्न अहीं व्यंजना
हास्य-प्रांजल भाव करुणा
हे स्वर साध्वी हे तान संजना!
अपनेक चरण- धूरि हमर अर्पणा!!
वैदेहीक आँगन जनकक बथान
जाधरि एक्को टा पाठक रहत
नहि हेती शारदे म्लान
ताधरि हमर लेखनी चलत
यशक परवाहि बिनु कएने
भौतिक आहि बिनु धएने
पढ़ैत रहब लिखैत रहल
अहीँक गुण गबैत रहब
जौं सभ विदेह सुत बौआ जेताह
आन भाषाक खोपड़ी मे नुका जेताह
तैयो नहि संग छोड़ब आराधना
अहीँक संग नचैत रहब
निन्न मे जागल मे
हे मैथिली! हे उपासना!!
अहीं केँ अपन कटाह गीत
फफकि-फफकि सुनबैत रहब
दुःखक काल संग देलहुँ
विह्वल-त्रास हरि लेलहुँ
सुत एकसरे कोना छोड़ि देत?
की मायक हिया मचोड़ि देत??