भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न मंदिर में सनम होते / नौशाद लखनवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 27 सितम्बर 2014 का अवतरण
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता
न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता
ज़ेरे-पा: under feet
घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता
बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता
तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लॉट गये
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता