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कविता मे प्राण / कालीकान्त झा ‘बूच’

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"माय गय, बाबू औलथुन्ह"
हलसलि फुलसलि दौड़लि दौड़लि
खसैत पड़ैत -ई संवाद सुनौलक
हँपसैत एकटा बालिका
गमकैत चैतक एक बाध केँ !
रपरप हांसुक छपछप छीपल बीट
पाँजक पाँज
बोझक बोझ
बन्हाइत गेल ; बन्हाइत गेल
आ ताहि सँ एक अलगबा क'
गुमकल देहक कछमछी केँ बुलकी सँ झाँपि
ढुनकल ठोरक मुस्की केँ ओहि सँ नपैत
अस्तव्यस्त अंतरक आनंद केँ
आकुलता सँ मिझरबैत
वेगरता नाँचि उठलै -
सेहन्तगर ठुमकीमे !
मासान्तक सागरपर
कमलक कम्पन सँ
परिमल पसरल की -
अन्हरा मे आँखि
बहिरा मे कान आ
" कविता मे प्राण "
आबि गेलैक !!