भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़ों की हरियाली / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 30 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरे-भरे पेडों सी होती हैं लडकियाँ
अपनी घनी शीतल छाँह में
धूप और वारिश से बचाती
पत्तों के पंखे डुलाती
रंग-बिरंगे फूलों से सजी
बिखेरती हैं ख़ुशबू हवाओं में

संगीत का शायद ही कोई साज हो
जो निर्मित न हो उनकी काया से
उन्हीं के स्वर से जन्म लेती हैं
सारी मूर्त-अमूर्त कलाऍ
जिसमे आकार लेता है सकल निराकार

पेड़ो की डालियाँ ये
हर बार छाँट दी जाती हैं
घर की दहलीज पर
चाहे जहाँ भी रोप दो
पनप जाती हैं थोड़े से प्यार की नमी से
चाहे जैसी हो मिट्टी चाहे जैसी हो हवा

पेड़ों से काट कर भी
वे बना ली जाती हैं अक्सर घरों में
मेज कुर्सी खाट
हवन की हवि भी बहुत बार
कई बार ऐसे हालात भी
इन्हें सुलगा नहीं पाते
वे अंगुली नहीं उठाती
जुवान नहीं चलाती

पेड़ों की हरियाली सी होती हैं लडकियाँ
दुनिया के सारे नींड़
 बनते है उन्हीं की टहनियों पर