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अकाल / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन

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पश्चिम दिगंत में
बादल ठिठके हुए हैं ईश्वर की तरह
सोच रहे हैं -- इस धरती पर
अब भी क्या उतरने का समय नहीं हुआ...
नहीं हुआ इसीलिए झुलसी जा रही है छाती।

दिगंत के थोड़े ही ऊपर
ईश्वर का चेहरा ठिठका हुआ
वह उतर आना चाहता है धरती पर
हालाँकि वह बेहद डरा हुआ है
बहुत ही असम्मत है
दोनों के मध्यवर्ती जलवायु

पश्चिमी आसमान में इसीलिए
ख़ून नहीं है... घाव हैं केवल...