जिसको नसीबे लज्ज़ते आज़ार भी नहीं / नज़ीर बनारसी
जिसको नसीबे लज्जते आजार <ref> मुसीबत चखने का सौभाग्य</ref> भी नहीं
वह बदनसीब जीने का हकदार भी नहीं
कल जिसके सर पे सायाए जुल्फें दराज़ <ref>लम्बे बालों का साया</ref> था
आज उसके सर पे सायाए दीवार भी नहीं
तुम हाल पूछते हो, इनायत का शुक्रिया
अच्छा अगर नहीं हॅूँ तो बीमार भी नहीं
जल्वागरी <ref>प्रदर्शन</ref> की आपको मोहलत नहीं अगर
मेरी नजर को फुर्सते दीदार भी नहीं
सूनी पड़ी है मंजिले मेराजे इश्क <ref>प्यार के चरम की मंजिल</ref> भी
अब कोई लायके रसनो दार <ref>रस्सी व सूली के योग्य</ref> भी नहीं
जो बेखता हों उनको फरिश्तों में दो जगह
इन्सान वो नहीं जो खतावार भी नहीं
उलझेंगे क्या वो गर्दिशे लैलो नहार <ref>रात-दिन</ref> से
जो आश्नाए काकुलो रूखसार <ref>केश और कपोल के प्रेमी</ref> भी नहीं
जीने से तंग आ गया हर आदमी मगर !
मरने के वास्ते कोई तैयार भी नहीं
क्यों अपने सर गुनाह का इल्जाम लूँ ’नजीर’
जब एक साँस लेने का मुख्तार <ref>अधिकारी</ref> भी नहीं