भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको मेरे हाल पर अब छोड़िए / नज़ीर बनारसी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:54, 15 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर बनारसी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मुझको मेरे हाल पर अब छाड़िए
आप मस्तकबिल <ref>भविष्य</ref> से रिश्ता जोड़िए
आपको दुनिया न कुछ कहने लगे
अपने दीवाने का पीछा छोड़िए
कौन तय करता है कितना फासला
फैसला अब फासले पर छाड़िए
जिन्दगी है एक टूटा सिलसिला
जोड़ सकते हैं तो आकर जोड़िए
मेरा दिल मस्जिद नहीं मन्दिर नहीं
कम से कम इसको समझकर ताड़िए
आजमाते जाइए किस्मत ’नजीर’
संगे दर <ref>दरवाजे का पत्थर</ref> जो भी मिले सर फोड़िए
शब्दार्थ
<references/>