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पिया की दूर नगरिया है! / राधेश्याम ‘प्रवासी’

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आ रही मधुर मिलन की रैन,
पिया की दूर नगरिया है!

नैहर रह न सकेगी दुलहिन
चलना प्रिय के देश,
आज विदा की बेला में
रुपसी सजा ले वेश,

चलना होगा दूर देश है
कठिन डगरिया है!

निशा-केश विन्यास उषा की
माँग सजा अलबेली,
रह न सकेगी शयन कक्ष में
दुलहिन आज अकेली,

सूरज बिन्दी, ओढ़ गगन की
नील चुनरिया है!

सात समुन्दर की प्यासों को
अधरांे बीच बसाले,
केश-पाश में घन की घनता
का साम्राज्य छुपाले,

छलक न जाये तेरे प्रणय की
भरी गगरिया है!

उस काजल का अंजन करले
जिसकी रेख न मिट पाये,
लगा महावर आज सुहागिन
जिसका रंग न जा पाये,
दाग पड़े न मिटें चूनर की
कभी लहरिया है!

जो न पड़ सके धूमिल तुझको
कंुकुम वही लगाना है,
घूँघट के पट खोल नवेली
पिया मिलन को जाना है,
श्वास-श्वास पर चली आ रही
विरह खबरिया है!
मधुर मिलन की रात वहीं
कल्पना लोक के गाँव में,
कुसुमित पूनम, रजन रश्मियाँ
चन्दा की मधु छाँव में,
दूर गगन में दमक रही
तारों की अटरिया हैं!

तेरा अटल सुहाग सुहागिन
कभी न मिटने वाला,
उसे न सकती मार मौत की
तरल गरल मयि हाला,
बजा रहा जो शून्य विजन में
प्रणय बँसुरिया है!

जन्म जन्म का बिछ ड़ा साथी
निश्चय तुझे मिलेगा,
रात अतृप्त इच्छाओं का
निस्तार वहीं पर होगा,
कर न आज मनुहार
द्वार पर खड़ा सँवरिया है!