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वो समन्दर मुझे दिखाता है / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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वो समन्दर मुझे दिखाता है ।
फिर मेरा सब्र आज़माता है ।
पहले पत्थर हमें डराते थे,
अब हमें आईना डराता है ।
तैरना तू सिखा समन्दर अब,
डूबना तो हमें भी आता है ।
ये बुझाने के काम आएगा,
आग पानी में क्यों लगाता है ।
तेरी आवाज़ ये सुनेंगे नहीं,
ये तो मुर्दे हैं क्यों जगाता है ।
गिरने वाली हैं ख़ुद ये दीवारें,
तू इन्हें किसलिए गिराता है ।