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सामने है शान्ति पारावार, / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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सामने है शान्ति पारावार,
बहा दो तरणी, हे कर्णधार।
होगे तुम्हीं मेरे चिर-साथी,
लो उठा मुझे, अपनी गोद मंे ले लो,
असीम के पथ में जलने दो
ज्योति ध्रुव तारा की।
मुक्तिदाता, तुम्हारी क्षमा, तुम्हारी दया
होगी चिर-यात्रा में पाथेय मेरा।
हो जाय मर्त्य का बन्धन क्षय,
विशाल विश्व ले ले मुझे गोद में हाथ पसारकर,
मिल जाय निर्भय परिचय
महा-अपरिचित का अन्तरात्मा में।
‘डाकघर के लिए लिखित और कवि के तिरोधान के दिन पठित