भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुःख की अँधिरिया रात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 18 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |अनुवादक=धन्य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दुःख की अँधिरिया रात
आई है बार-बार
मेरे इस द्वार पर,
एक मात्र देखा था अस्त्र उसका
कष्ट का विकृत भान, त्रास की विकट भंगिमा
छलना भूमिका अन्धकार में।
भय का नकली चेहरा देख विश्वास किया जितनी बार
उतनी ही बार हुआ पराजय व्यर्थ का।
यह हार जीत का खेल, जीवन की झूठी माया यह
शिशु काल से विजड़ित है पद-पद में विभीषिका,
दुःखमय परिहास पूर्ण।
भय का विचित्र है चलचित्र-
मृत्यु का निपुण शिल्प है विकीर्ण अन्धकार में।
कलकत्ता
सायाह्न: 29 जुलाई, 1941