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नगाधिराज के सुदूर नारंग निकुंज के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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नगाधिराज के सुदूर नारंग निकुंज के रस पात्र सब
ले आये हैं मेरी शय्या के निकट अब
जन हीन प्रभात रवि की मित्रता,
अज्ञात निर्झरिणी के
विच्छुरित आलोकच्छटा की
हिरण्मय लिपि,
सुनिविड़ अरण्य वीथिका के
निःशब्द मर्म विजड़ित
स्त्रिग्ध हृदय के दौत्य को।
रोग पंगु लेखनी की विरल भाषा के इंगित में
भेजता है कवि
सन्देश आशीर्वाद का।