भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 24 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तू मुझे रुलाके भी ख़ुश नहीं
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
जो तू ख़ुश नहीं तो मैं कुछ नहीं
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।।
तेरी आस्तीं पे जो दाग़ था
वो मेरी वफ़ा का सुराग़ था
वो सुराग़ तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
तू मेरी वफ़ा का नसीब है
मेरी धड़कनों के क़रीब है
ये भरम भी तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
मेरी आन तू मेरी शान तू
मेरी जान मेरा जहान तू
ये भरम भी तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
छुपा क्या है तुझसे छुपाऊँ क्या
तुझे दिल के दाग़ दिखाऊँ क्या
तुझे साफ़-साफ़ बताऊँ क्या
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
मेरे हमसफ़र तुझे क्या हुआ
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।।