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तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र / कांतिमोहन 'सोज़'

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तू मुझे रुलाके भी ख़ुश नहीं
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।
जो तू ख़ुश नहीं तो मैं कुछ नहीं
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।।

तेरी आस्तीं पे जो दाग़ था
वो मेरी वफ़ा का सुराग़ था
वो सुराग़ तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।

तू मेरी वफ़ा का नसीब है
मेरी धड़कनों के क़रीब है
ये भरम भी तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।

मेरी आन तू मेरी शान तू
मेरी जान मेरा जहान तू
ये भरम भी तूने मिटा दिया
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।

छुपा क्या है तुझसे छुपाऊँ क्या
तुझे दिल के दाग़ दिखाऊँ क्या
तुझे साफ़-साफ़ बताऊँ क्या
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।

मेरे हमसफ़र तुझे क्या हुआ
तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र ।।