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मोहि सखि! रह्यौ स्याम-ग्रह घेर / स्वामी सनातनदेव

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राग भैरवी, कहरवा 3.6.1974

मोहिं सखि! रह्यौ स्याम-ग्रह घेर।
मैं तो डरूँ कानि की मारी, यह आवत बहु बेर॥
पै जब देखूँ दीखत नाहीं, लगत न नैंकहुँ देर।
पौरी हूँ पै नजर न आवै वृथा रहूँ टेर-टेर॥1॥
कोउ कहहिं तू भई बावरी, है यह मति को फेर।
कहाँ यहाँ नँदलाल भला, वह रह्यो धेनु बन घेर॥2॥
कहा करों, मेरी मति मारी, परी प्रीति के फेर।
जित देखूँ तित स्यामहि दीखै सन्ध्या और सबेर॥3॥