ध्वनि, ब्रज के लोकगीत, कहरवा
मोहिं सखि! स्यामजू की सोंह<ref>शपथ, सौगन्ध</ref>।
मेरो भाव न और कहूँ, मैं फँसी स्याम के मोह॥
स्याम विना मोहिं कछु न सुहावै।
निसि-दिन स्यामहि की सुधि आवै।
स्यामहिं सुमिरि हियो सचुपावै।
सब हि स्याम-सन्दोह<ref>राशि, प्राचुर्य</ref>॥1॥
स्याम पिया मो जिया जुड़ावै।
स्याम-दरस की तरस सतावै।
स्याम नाम की रटन सुहावै।
रह्यौ स्याम मन पोह<ref>पिरोया हुआ, ओत-प्रोत</ref>॥2॥
स्याम ही मेरो सरबसु माई।
स्याम बिना जीवन दुखदाई।
स्याम मोहिं सब कछु दरसाई।
तदपि स्याम की टोह॥3॥
स्याम-सुधा पी मैं मदमाती।
रहूँ स्याम में रत दिन-राती।
स्यामहि गाती स्यामहि पाती।
छकी स्याम के छोह॥4॥
शब्दार्थ
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