भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम बिनु छटपट प्रान करें / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 25 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग गुणकली, तीन ताल 26.7.1974

तुम बिनु छटपट प्रान करें।
प्रानन की निधि हो तुम मोहन! कैसे धीर धरें॥
बिना तिहारे दीन-हीन अति ज्यों-त्यों गुजर करें।
पजरि-पजरि हूँ दरस आस लै नाहिन पजरि मरें॥1॥
कबलौं यों निबहैगी प्रीतम! कबलौं जियत जरें।
पथ-पेखत सब वयस सिरानी, अब कहु कहा करें॥2॥
ऐसी कहा निठुरई प्यारे! जो हम जरें झरें।
पै सपनेहुँ नहिं मिलत वस्तु वह जाकी आस करें॥3॥
तुमने ही यह जरनि दई फिर क्यों नहिं वरन करें।
प्रीतम को प्रसाद लै पुनि-पुनि रुचि-रुचि सीस धरें॥4॥
जरनि दई, अब सरन देहु-बस एती विनय करें।
सरन-सुधा जो मिलहि स्याम! तो फिर क्यों जरें मरें॥5॥