उपलब्धियों की दौड़ में कब
खो गया सुख का ठिकाना
और कितनी दूर जाना?
क्या किसी पड़ाव पर
बैठ सेंकी धूप तूने
हाथ के दोने में रक्खी
बारिशों की बूँद तूने
भूल गया शोर में तू
पंछियों का चहचहाना
और कितनी दूर जाना?
उड़ रहा जो ठीक पीछे
धूल का गुब्बार देख
बाट जोहती, थक गई जो
आँख की बौछार देख
लौट आ , आबाद कर
हाथ जोड़े घर वीराना
और कितनी दूर जाना ?
फुनगियों पे नींव रखी
आसमां पे घर बसाया
एक दिन होगा अकेला
क्या कभी यह होश आया
भोगने का वक्त कम है
व्यर्थ ही भरता खजाना
और कितनी दूर जाना?