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हिन्दी विश्वजीत हो / शशि पाधा

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छन्द हो , गीत हो,
स्वर हो, संगीत हो
जो रचूँ , जो कहूँ
हिन्दी मन का मीत हो

भावना में तू बहे
कल्पना में तू सजे
मन के तार –तार में
प्राण वीणा सी बजे

जहाँ रहूँ , जहाँ बसूँ
हिन्दी से चिर प्रीत हो ।

स्रोत तू ज्ञान का
आधार उत्थान का
देस- परदेस में
चिह्न तू पहचान का

मन में इक साध यह
हिन्दी विश्वजीत हो ।

परम्परा की वाहिनी
अविरल मंदाकिनी
सुनिधि सुसहित्य की
संस्कार की प्रवाहिनी

भविष्य के विधान में
हिन्दी ही रीत-नीत हो।

नक्षत्रों के पार भी
ध्वज तेरा फहराएँगे
धरा से आसमान तक
ज्योत हम जलाएँगे

हर दिशा, हर छोर में
सूर्य सी उदीप्त हो।
हिन्दी विश्वजीत जीत हो!!