लेखक: कन्हैयालाल नंदन
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
खारेपन का अहसास
मुझे था पहले से
पर विश्वासों का दोना
सहसा बिछल गया
कल ,
मेरा एक समंदर
गहरा-गहरा सा
मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।
लेखक: कन्हैयालाल नंदन
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खारेपन का अहसास
मुझे था पहले से
पर विश्वासों का दोना
सहसा बिछल गया
कल ,
मेरा एक समंदर
गहरा-गहरा सा
मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।